Tuesday 7 June 2011

'''''रेत हांथों से झरती है''''by Sukamaari Arora on Tuesday, May 17, 2011 at 4:01pm

'''''रेत हांथों से झरती है''''

by Sukamaari Arora on Tuesday, May 17, 2011 at 4:01pm


 '''रेत हांथों से झरती है
जिंदगी मेरी गमो में भी अट्टहास करती है
और कभी अपने ही अट्टहास से डरती है
ज़ख्मो की खाइयाँ जो न भर पायी कभी
शबे-ए-गम मेरी उसे अश्को से भरती है
अब उनका तसुवर में भी कतरा का जाना
बात यही उनकी हमें बहुत अखरती है
वफ़ा की एवज़ जो मिली जफा हमको
उसी सजा से जिंदगी अब मेरी कटती है
उनकी जिंदगी से हम ऐसे निकले ''सुकमारी'''
जैसे पकड़ के रेत हाथो से झरती है
--------------सुकमारी,,///17.5.2011

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